भारतीय समाज में एक ऐसी अनोखी संस्कृति का विकास हुआ है जिसमें विविधता में एकता का अनुपम उदाहरण देखने को मिलता है। हमारे राष्ट्रगान में “पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड उत्कल बंगा” का समावेश है, हमारा राष्ट्रगान भी विविधता को व्यक्त करता है। यह विविधता इन्द्रधनुषी है। इसमें अनेक रंगों का सुन्दर मेल है। भारत की विभिन्न संस्कृतियाँ फूल की पंखुड़ियों की भाँति हैं जिनके संयोजन से एक पुष्प बनता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति की विविधता इस प्रकार सुन्दरता बिखेर रही है मानो एक माला में विविध प्रकार के फूल गँथे हुए हैं। भारतीय संस्कृति की यह सुन्दरता अनुपम है। भारत की विविधता एकता में समारस हो गई है। उसे अलग-अलग पहचानना अत्यन्त कठिन है।
भारत में सांस्कृतिक विविधता- भारतीय संस्कृति हमारों वर्षों के विकास का परिणाम है। यह सदैव विकासशील रही है। विश्व के विभिन्न भागों से अनेक जनसमूह भारत में आकर बसे और अपने साथ अपनी सांस्कृतिक परम्पराएँ भी लाए। भारतीय संस्कृति के विकास में विदेशी आक्रमणकारियों का भी योगदान रहा है। भारत में सबसे पहले आर्य लोग आए। अधिकांश विद्वानों का मत है कि आर्य लोग बीच एशिया से भारत में आए। इसके बाद विश्व के अन्य भागों से भी भारत में लोगों का आना प्रारम्भ हो गया और कालक्रम से वे स्थायी रूप से यहीं बस गए। संस्कृति-हस्तान्तरण की प्रक्रिया से इनकी सांस्कृतिक परम्पराएँ भारत की संस्कृति में सम्मिलित हो गईं और एक नई संस्कृति की उत्पत्ति हुई। विदेशी आगन्तुकों के साथ हमारा केवल व्यापारिक सम्बन्ध नहीं रहा बल्कि विचारों, आस्थाओं, अनुष्ठानों एवं परम्पराओं का आदान-प्रदान भी हुआ। इस प्रकार भारत में एक ऐसी सम्मिलित संस्कृति का विकास हुआ जिसमें अनेक संस्कृतियों का वैभव, श्रेष्ठता तथा विविधता साकार हो गई। इसलिए भारतीय संस्कृति को सामाजिक संस्कृति कहा जाता है। वास्तव में संस्कृति एक अमूर्त संकल्पना है जिसका मूर्त रूप मनुष्यों के आचार-विचार, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, वेशभूषा एवं रहन-सहन में मूर्तमान होता है।
भौगोलिक परिस्थितियों में अन्तर होने के कारण विभिन्न भू-भागों में निवासियों के रहन-सहन में भी अन्तर आ जाता है। उनकी जीवन-शैली भिन्न हो जाती है, इसलिए उनमें सांस्कृतिक विविधता प्रकट होती है। जैसे समुद्री किनारे पर रहने वाले लोगों की संस्कृति जंगल में रहने वाले आदिवासियों से भिन्न होती है। शहर एवं गाँव की संस्कृति में अन्तर देखने को मिलता है। संस्कृति की विरासत हम अपने पूर्वजों से प्राप्त करते हैं और उसमें थोड़े-बहुत अन्तर के बाद उसे आत्मसात् करते हैं। हम अपनी संस्कृति से अपना सम्बन्ध विच्छेद नहीं करना चाहते, हम उसे पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखना चाहते हैं। भारत सरकार भी इस दिशा में प्रयत्नशील है। भारत सरकार “अपना उत्सव” आयोजित कर अपने देश की इन्द्रधनुषी संस्कृति को साकार करती है। इस उत्सव में देश के विभिन्न क्षेत्रों के कलाकार लोककलाएँ, लोकगीत, लोकनृत्य, लोकनाट्य तथा लोककथाएँ प्रस्तुत करते हैं। भारत एक महाद्वीप के समान विशाल है। इसकी अपनी विविध क्षेत्रीय संस्कृतियाँ हैं। प्रत्येक राज्य अथवा क्षेत्र की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं; जैसे- पंजाब का भाँगड़ा, महाराष्ट्र की लावनी, दक्षिण भारत का भरतनाट्यम्, कथकली, उत्तर प्रदेश का कत्थक, बंगाल का झाऊनृत्य, गुजरात का गरबा तथा दौड़ियाँ हमारा मन मोह लेते हैं। भारत की संस्कृति अत्यन्त समृद्ध तथा वैविध्यपूर्ण है। 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित झाँकियाँ हमारी वैविध्यपूर्ण संस्कृति एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। भौगोलिक परिस्थितियों में अन्तर होने के कारण लोगों के पहनावे तथा वेशभूषा में अन्तर होता है जैसे कश्मीर के लोग सर्दी से बचने के लिए पिरन पहनते हैं और साथ में काँगड़ी रखते हैं। दक्षिण के निवासी गर्मी से बचने के लिए लुंगी पहनते हैं। इस प्रकार क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण लोगों के रहन-सहन, और में अन्तर होता है। आवागमन की सुविधाओं तथा सामाजिक गतिशीलता के कारण वर्तमान समय में संस्कृतियों में भी गतिशीलता आ गई है। आज अनेक चीजों का प्रचार-प्रसार पूरे देश में हो रहा है, जैसे आज देश भर की लड़कियाँ पंजाबी भी सूट पहनती हैं। गाँधी जी के स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर देश भर के गाँधीवादी खादी का कुर्ता, पायजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं।
इसी प्रकार बंगाली मिठाइयाँ, दक्षिण का इडली-दोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, महाराष्ट्र की पूरन पोली देश के लोग चाव से खाते हैं। आज कलाएँ तथा साहित्य भी एक विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं। एक भाषा का साहित्य दूसरी भाषा में अनूदित होकर प्रकाश में आ रहा है। साहित्य एकादमी द्वारा प्रकाशित “समकालीन साहित्य” पत्रिका में प्रत्येक भाषा की रचनाएँ हिन्दी में अनूदित होकर भारतीय साहित्य की झाँकी प्रस्तुत करती हैं। वर्तमान समय में भारत के प्रसिद्ध दार्शनिकों, विचारकों तथा सन्तों के विचार विभिन्न भाषाओं में अनूदित होकर सम्पूर्ण देश में पहुँच रहे हैं और देश की जनता उनसे लाभ प्राप्त करती रही है। हमारी विचार-सम्पदा बढ़ रही है। इस दिशा में दूरदर्शन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दूरदर्शन ज्ञान-वृद्धि में योगदान दे रहा है। राष्ट्रीय एकता को पोषण करने वाले गीत प्रदर्शित किए जाते हैं जिनसे भारत की विविधता व्यक्त होती है। “मिले सुर मेरा तुम्हारा” एक ऐसा गीत है जो सम्पूर्ण भारत की वाणी को मुखरित करता है। प्राचीन काल से ही भारत की संस्कृति अत्यन्त लचीली तथा उदार रही है। उसने परस्पर विरोधी संस्कृतियों को भी अपने में समाहित कर लिया है। भारतीय संस्कृति विविधता की जीती जागती प्रतिमा है।