प्लासी और बक्सर का युद्ध

1757 ई. के प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की पराजय व मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया, चूँकि मीरजाफर अंग्रेजों की कृपा से बंगाल का नवाब बना था, अतः इसकी एवज में मीरजाफर को अंग्रेजों को इतना धन देना पड़ कि यह सब महल के सोना, चाँदी व जवाहरात बेचकर ही पूरा किया जा सका। लेकिन फिर भीधन लेने को अंग्रेजों की भूख भी कम होने के स्थान पर बढ़ती जा रही थी। मीरजाफर का राज्यकोष पूर्णतः रिक्त हो गया और इसके लिए जब अंग्रेजों की माँगें पूरी करना और धन देना असम्भव हो गया तो अंग्रेजों ने मीरजाफर की आलोचना करना शुरू कर दिया, क्योंकि अंग्रेज नवाब से ज्यादा से ज्यादा धन वसूल करना चाहते थे।

अब अंग्रेजों ने नवाब मीर कासिम को भी गद्दी से उतारने के लिए षड्यन्त्र रचना शुरू कर दिया। अक्टूबर, 1760 में मीर जाफर को भी गद्दी से हटा दिया और इसके स्थान पर मीर कासिम को गद्दी पर बिठा दिया। नये नवाब मीर कासिम ने नवाब बनने के बदले में अंग्रेजों को 25 लाख रुपये नगद व बर्दवान, मिर्जापुर व चिटगाँव की जागीरें इनाम में दीं। मीर कासिम एक योग्य व महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह अंग्रेजों के साथ निकट भविष्य में युद्ध अवश्यम्भावी मानता था। अतः वह अपने राज्य की सैनिक शक्ति में वृद्धि करना चाहता था। मीर कासिम का मानना था कि अंग्रेजों से दीर्घकालीन संघर्ष करने व अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करने के लिए राज्य का आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली होना आवश्यक है। अतः मीर कासिम ने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहला कार्य तो अपने राज्य को आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली बनाने के लिए कार्य करना आरम्भ किया। मीर कासिम ने पिछला बकाया कर वसूल करने के लिए, जमींदारों को दबाया, तथा उन्हें कर देने के लिए बाध्य किया। उन सभी जागीरदारों को कर देने के लिए बाध्य किया जिन्होंने मीर जाफर के शासन काल में कर देना बन्द कर दिया था। मीर कासिम ने उन सभी विद्रोही जमींदारों के विद्रोह का दमन किया जो बंगाल राज्य के विरुद्ध मुगल शासन को सहयोग देते थे। बंगाल को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के बाद मीर कासिम ने सैनिक शक्ति को बढ़ाने की तरफ ध्यान दिया, मीर कासिम महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था, वह हमेशा अंग्रेजों की कठपुतली बनकर नहीं रहना चाहता था। अत: अंग्रेजों के नियन्त्रण से मुक्त होने के लिए उसने शीघ्र ही अंग्रेजों का कर्ज चुका दिया।

मीर कासिम ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए नये किलों का निर्माण करवाया व पुराने किलों की मरम्मत करवायी। नवाब ने अपने सैनिकों की संख्या में वृद्धि की तथा सैनिकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की, तथा सैनिकों को यूरोपीय आधार पर प्रशिक्षित करवाने के लिए योग्य प्रशिक्षकों की नियुक्ति की। लेकिन अंग्रेज नवाब के इन कार्यों को सहन नहीं कर सकते थे। वे तो बंगाल की गद्दी पर ऐसे व्यक्ति को बिठाना चाहते थे जो अंग्रेजों की कठपुतली बन कर रह सके, जो अंग्रेजों की हर माँग को पूरा कर सके और जो अंग्रेजों के इशारे पर नाच सके। जब मीर कासिम किसी भी तरह अंग्रेजों के नियन्त्रण में नहीं आया तो फिर अंग्रेजों ने नवाब मीर कासिम के विरुद्ध भी षड्यन्त्र रचना शुरू कर दिया जिससे अंग्रेजों व मीर कासिम के बीच युद्ध अवश्यम्भावी हो गया। अंग्रेजों व नवाब के बीच अक्टूबर, 1764 के बक्सर के मैदान में निर्णायक युद्ध लड़ा गया। बक्सर के युद्ध के प्रमुख कारणों का वर्णन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं।

बक्सर के युद्ध के कारण

(1) मीर कासिम का महत्त्वाकांक्षी होना मीर कासिम अंग्रेजों के नियन्त्रण में उनकी कठपुतली बन कर नहीं रह सकता था। अतः उसने सबसे पहले तो अंग्रेजों का कर्ज चुकाया और फिर अपने आप को अंग्रेजों के नियन्त्रण से मुक्त मानकर स्वतंत्रतापूर्वक शासन करना शुरू कर दिया। मीर कासिम ने सभी विद्रोही जमींदारों के विद्रोह का दमन किया और उन्हें वार्षिक कर देने के लिए बाध्य किया। भ्रष्ट अधिकारियों को दण्डित किया गया और प्रशासन को व्यवस्थित किया गया। अंग्रेज मीर कासिम की स्वतन्त्रता को सहन नहीं कर सकते थे। अतः वे मीर कासिम को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।

(2) राजधानी परिवर्तन-बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था। इसके अतिरिक्त मुर्शिदाबाद राजधानी के रूप में अधिक सुरक्षित भी नहीं रह गयी थी। अतः मीर कासिम ने अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर में परिवर्तित कर दिया। यहाँ नवाब ने किबन्दी की और सेना का जमाव किया। उसने लगभग 40,000 की सेना का जमाव किया और एक गोला बारूद बनाने का कारखाना भी यहाँ स्थापित किया नवाब को इन सैनिक तैयारियों को किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकते थे।

(3) प्लासी की पराजय का बदला लेना अंग्रेजों ने प्लासी के 1757 के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुदौला को परास्त किया गया व मीर जाफर के पुत्र मौरन के द्वारा उसे मार दिया गया था। नवाब मीर कासिम बंगाल की इस पराजय से अत्यधिक दुखी या और अति शीघ्र ही अंग्रेजों से इस पराजय का बदला लेना चाहता था। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए नवाब मौर कासिम ने अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिक तैयारियाँ करना शुरू कर दिया था।

(4) दस्तक प्रथा मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने अंग्रेजों को बिना कर दिये व्यापार करने का विशेषाधिकार प्रदान किया था। कम्पनी के व्यापारी अपने इस अधिकार का दुरुपयोग करते थे। वे स्वयं तो बिना कर दिये व्यापार करते ही थे बल्कि भारतीय व्यापारियों का माल भी अपने इस्ताक्षरों से बिना कर दिये निकाल दिया करते थे तथा भारतीय व्यापारियों से कुछ प्रतिशत कर ‘वसूल कर लिया करते थे। इससे राज्य को अत्यधिक आर्थिक हानि हो रही थी तथा राज्य के ईमानदार अधिकारियों को भी अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इस समस्या की समाप्त करने के लिए, भारतीय व्यापारियों से भी कर लेना बन्द कर दिया। इससे अंग्रेजों का विशेषाधिकार स्वतः ही समाप्त हो गया साथ हो उनका व्यक्तिगत लाभ भी समाप्त हो गया। जबकि अंग्रेज इस विशेषाधिकार व लाभ को छोड़ना नहीं चाहते थे। यद्यपि कलकत्ता कौंसिल ने नयाब के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि यदि भारतीय व्यापारियों से 305चुंगी कर वसूल किया जाये तो अंग्रेज व्यापारी भी टक्कर देने को तैयार हैं। नवाब ने अंग्रेजों की इस माँग को ठुकरा दिया जिससे अंग्रेज नवाब से क्रोधित हो गये और उसके विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे।

(5) अंग्रेजों द्वारा नवाब के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना-अंग्रेजों व नवाब के बीच सम्बन्ध इस समय तक अपनी शत्रुता की चरम सीमा पर पहुँच चुके थे। अंग्रेज नवाब को प्रत्येक क्रिया को सन्देह की दृष्टि से देख रहे थे। नवाब प्रारम्भ से ही अंग्रेजों के नियन्त्रण से मुक्त होना चाहता. था जबकि अंग्रेज बंगाल का नवाब कोई ऐसा व्यक्ति चाहते थे जो उसकी हर आदेश की पालना कर सके, उसके नियन्त्रण में रह सके तथा उनको धन की आवश्यकता को पूरा कर सके। अतः अब अंग्रेजों ने मीर जाफर के साथ मिलकर नवाब मीर कासिम के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना शुरू कर दिया। नवाब की जब इस बात का पता चला तो वह अंग्रेजों से अत्यधिक क्रोधित हो गया और उन्हें सबक सिखाने की तैयारियाँ करने लगा।

(6) मीर कासिम की प्रतिक्रिया मीर कासिम को जब अंग्रेजों के षड्यन्त्र का पता चला तो वह अत्यधिक क्रोधित हो गया और उसने कलकत्ता की कासिम बाजार स्थित अंग्रेजों की फैक्ट्री पर आक्रमण कर दिया तथा अंग्रेजों को परास्त करके, उस पर अधिकार कर लिया। लेकिन कलकत्ता से आयी फौजों ने पुनः आक्रमण किया तथा नवाब की सेना को परास्त करने भगा दिया। स्वयं मीर कासिम परास्त होकर पटना की ओर भाग गया। वहाँ जाकर उसने सभी बन्दी बनाये गये अंग्रेजों को कत्ल कर दिया। यह घटना पटना हत्याकाण्ड के नाम से जानी जाती है।

बक्सर का युद्ध – मीर कासिम पटना से भाग कर अवध गया तथा वहाँ के नवाब शुजाउद्दौलासे अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी। शुजाउद्दौला मीर कासिम को सहायता देने को तैयार हो गया। मुगल सम्राट शाह आलम भी इस समय दक्षिणी भारत में आया हुआ था अतः अवध व बंगाल दोनों के नवाब मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता प्राप्त करने के लिए मुगल सम्राट के पास पहुँचे सम्राट भी इन्हें सहायता देने को तैयार हो गये। तीनों ने मिलकर अपनी संयुक्त सेनाओं के साथ बक्सर के ऐतिहासिक मैदान में पहुँचे जहाँ 23 अक्टूबर, 1764 को अंग्रेजों व भारत की तीनों शक्तियों को सम्मिलित सेनाओं के बीच भीषण संघर्ष हुआ जिसमें अंग्रेजों की एक छोटी सी सेना ने तीनों भारतीयों की संयुक्त विशाल सेनाओं को बुरी तरह परास्त किया। नवाब मीर कासिम बंगाल से भाग गया। कुछ वर्षों के बाद अत्यधिक दरिद्र अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी।

बक्सर के युद्ध का महत्त्व और परिणाम

 (1) बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित आधुनिक भारत के इतिहास में बक्सर के युद्ध का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस युद्ध में अंग्रेजों की निर्णायक विजय हुई। अतः कई दृष्टियों से बक्सर का युद्ध प्लासी के युद्ध से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह युद्ध भारत के निर्णायक युद्धों में गिना जाता है। बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब अंग्रेज बंगाल का वास्तविक शासक बन गए। अब बंगाल कानूनी तौर पर अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। बंगाल के नवाब केवल अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था तथा बंगाल के शासन की वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथों में थी। रेम्जेम्यूर का कथन है कि, बक्सर के युद्ध ने अन्त में अंग्रेजी कम्पनी के शासन की बेड़ियों को बंगाल पर जकड़ दिया।

(2) अवध के नवाब पर अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित हो बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप अवध के नवाब एवं मुगल सम्राट पर भी अंग्रेजी कम्पनी का प्रभाव स्थापित हो गया। 1765 की इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार अवध के प्रान्त पर कम्पनी का नियन्त्रण हो गया। इस सन्धि के अनुसार अवध के नवाब शुजाउद्दौला को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पड़ी

  • अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहाबाद के जिले छीन लिए गए तथा ये दोनों जिले मुगल सम्राट को दे दिए गए। अवध का प्रान्त शुजाउद्दौला को लौटा दिया गया।
  • शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया।
  • नवाब ने कम्पनी को अवध में कर मुक्त व्यापार करने की सुविधा प्रदान की।
  • अंग्रेजों ने नवाब को सैनिक सहायता देना स्वीकार कर लिया परन्तु उसे ही अंग्रेज सेना का खर्चा वहन करना पड़ेगा।

डॉ. जगन्नाथ मिश्र का कथन है कि, “अवध के साथ संघर्ष हमेशा के लिए समाप्त हो गया क्योंकि इसके बाद अवध के किसी भी नवाब ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने की हिम्मत नहीं की।

 (3) मुगल सम्राट् पर कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित होना-बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप मुगल सम्राट् पर भी कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब वह कम्पनी का पेन्शनर बन गया। 1765 की इलाहाबाद की सन्धि के अनुसार मुगल सम्राट् शाहआलम को निम्नलिखित शर्तें स्वीकार करनी पड़ीं

  • अवध के नवाब सुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहाबाद के जिलों को लेकर मुगल सम्राट को दे दिए गए।
  • अंग्रेजों ने मुगल सम्राटों को 26 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन देना स्वीकार कर लिया।
  • मुगल सम्राट ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी सौंप दी।

(4) अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि-बक्सर के युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति तथा प्रतिष्ठा में अत्यधिक वृद्धि हुई। बक्सर की विजय से अंग्रेजों के लिए उत्तरी भारत में साम्राज्य स्थापित करना सरल हो गया। इस युद्ध के फलस्वरूप केवल बंगाल पर ही नहीं बल्कि अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट पर भी कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक अखिल भारतीय शक्ति बन गई। अब अंग्रेजों के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार बंगाल से दिल्ली तक हो गया। अब भारत में ब्रिटिश शासन की नींव मजबूत हो गई। पी.ई. राबर्ट्स का कथन है कि, “प्लासी की अपेक्षा बक्सर से भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्म भूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त है।

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