मनुस्मृति में राज्य की प्रकृति का वर्णन किया गया है। मनु ने राज्य को सावयव माना है। और यह माना है कि राज्य सात अंग होते हैं। कौटिल्य की भांति मनु ने भी राज्य के सात आवश्यक अंग अथवा तत्त्वों का उल्लेख किया है जिन्हें ‘सप्तांग गुप्त’ कहा गया है।
1. स्वामी अर्थात् राजा मनु ने राज्य के सात अंगों में राजा को सबसे महत्त्वपूर्ण माना है। मनु ने राजा को दैविक रूप में प्रतिष्ठित किया है। उनके अनुसार राजा अनेक देवताओं के अंश से मिलकर बना है। राजा सूर्य, इन्द्र, वरुण, यम आदि देवताओं के अंशों से मिलकर बना है। ये देवता उन प्रतिभाओं के प्रतीक हैं, जो राजाओं में होनी चाहिए। मनु के ही शब्दों में, “राजा विभिन्न देवों के अनुसार आचरण करता है। सूर्य के समान वह राष्ट्र से कर लेता है, वायु के समान दूतों द्वारा सबमें प्रवेश करता है। यम के समान अपराधियों का नियन्त्रण करता है और चन्द्रमा के समान प्रजा के लिए सुखदायी है।”
2. अमात्य अर्थात् मन्त्री – राज्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग अमात्य या मंत्री है। मनु का विचार है कि अच्छी तरह शासन संचालन के लिए राजा को एक मन्त्रिपरिषद् का गठन करना चाहिए। मन्त्रिपरिषद् में योग्य, वीर, कुलीन और वफादार व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए। राजा को चाहिए कि इन विश्वस्त मंत्रियों के परामर्श के अनुसार ही कार्य करे। मंत्रियों की संख्या 7 से 9 होनी चाहिए। राजा को चाहिए कि वह विश्वस्त मंत्रियों के परामर्श के काम करे। अनुसार
3. पुर अर्थात् राजधानी – राज्य के सात अंशों में एक पुर भी है जिसका अर्थ होता है। राजधानी मनु ने कहा कि जिस नगर को पुर बनाया जाए वह धन धान्य से भरपूर हो। वहाँ मधुर जल और ईंधन आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। वह नगर देखने में रमणीक हो, वहाँ के लोग निरोगी हों, लोगों के पास पर्याप्त काम हो और वे शूरवीर होने चाहिए। ऐसे नगर के चारों ओर कोई दुर्ग होना चाहिए। दुर्ग के बीच फल-फूलों से सुसज्जित वृक्षों के साये में राजा का वास होना चाहिए।
4. राष्ट्र अर्थात् भूमि एवं जनता-मनु ने राष्ट्र को भी राज्य का आवश्यक अंग माना है। राष्ट्र से मनु का तात्पर्य सारे समाज से है, जिसमें उस राज्य की धरती और उस पर रहने वाले सभी व्यक्ति सम्मिलित हैं। मनु ने राष्ट्र संगठन की विस्तार से चर्चा भी की। उनके अनुसार राज्य में नगरों के अतिरिक्त अधिकांश ग्राम होते हैं।
5. कोष – राज्य के महत्त्वपूर्ण अंगों में कोष भी है। राज्य की उन्नति व प्रगति के लिए कोष होना अत्यन्त आवश्यक है। राज्य का स्वास्थ्य कोष पर ही निर्भर करता है। संकट अथवा युद्ध के समय भी कोष बहुत काम आता है। मनु ने राजा को परामर्श दिया है कि वह जनता से कोष के लिए कर के द्वारा इस प्रकार धन वसूल करे, जिस प्रकार सूर्य जलाशय एवं नदी से वर्षा के है लिए पानी एकत्र करता है।
6. दण्ड या विधि-दण्ड राज्य का एक आवश्यक अंग है। दण्ड के अभाव में राज्य में है अव्यवस्था व अराजकता फैल जाती है। दण्ड राज्य की धुरी है। दण्ड राज्य का आधार है। मनु ने दण्ड शब्द को व्यापक अर्थों में प्रयुक्त किया है। दण्ड का अर्थ है, विधि। दण्ड का अर्थ है न्याय व्यवस्था और दण्ड का अर्थ है सजा। अपराधियों को सजा देना दण्ड ही है, परन्तु दण्ड की ये सभी व्याख्याएँ विधि की व्यापक व्याख्या की परिधि में आ जाती है। मनु ने दण्ड विधान का विस्तार से वर्णन किया है। उसने विभिन्न अपराधों के लिए विभिन्न दण्डों का प्रावधान किया है।
7. मित्र-राज्य के अस्तित्व के लिए प्राचीन भारतीय विद्वानों ने ‘मित्र’ को आवश्यक अंग माना है। मनु ने लिखा है कि प्रत्येक राज्य, विभिन्न राज्यों के समूह में रहता है। राज्यों के इस समूह में, उस राज्य को चाहिए कि वह अपने मित्रों की संख्या में वृद्धि करता रहे। राज्यों के समूह को मनु ने ‘मण्डल सिद्धान्त’ द्वारा प्रतिपादित किया है। एक मण्डल में मित्र और शत्रु रूप में बारह राज्यों की मनु ने कल्पना की है। मनु ने यह भी कहा है कि ‘षड्गुण’ की नीति अपनाते हुए दूसरे राज्यों के साथ यथा योग्य सम्बन्ध बनाए जाने चाहिए।