समाज का आधार मानव होता है। भारतीय समाज के मानवीय समुदाय में स्त्री और पुरुष के दो आधारभूत तत्त्व होते हैं लेकिन इन दोनों की संख्या अनुपात में अन्तर देखा जा सकता है। भारत में इन दोनों लिंगों ने मानवीय समाज में अनेक विषमता मानी जाती है। कुछ प्राकृतिक हैं, कुछ समाज द्वारा उत्पन्न हैं। इन्हीं को लैंगिक विषमता के नाम से जाना जाता है।
“भारत की महिलाओं पर मुझे गर्व है। मुझे उनके सौन्दर्य, आभा, आकर्षण, लज्जा, शालीनता, बुद्धिमत्ता और त्याग की भावना पर नाज है। मैं सोचता हूँ कि यदि भारत की भावना का सही मायने में कोई प्रतिनिधित्व कर सकता है तो वे भारत की महिलाएँ ही हो सकती हैं, पुरुष नहीं।” पण्डित जवाहरलाल नेहरू के इस कथन को नकारती हुई भारतीय मानसिकता, देश में निरन्तर घट रहा लिंगानुपात यह स्पष्ट करता है कि लैंगिक विषमताएँ भारत में कितनी स्थायी हो चुकी हैं।
यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष एक करोड़ 30 लाख कन्या भ्रूणों की हत्या कर दी जाती है। जिस समाज में लिंग भेद का आधार शिशु माँ की कोख में ही भोग लेता है वहाँ की स्थिति कितनी भयावह होगी इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
समाज की लगभग आधी जनसंख्या स्त्रियों की है, उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने के लिए शैक्षिक योजनाओं को परिवर्तित करना होगा। लैंगिक विषमता की समस्या को समझने के लिए इसके कारणों का अवलोकन करें तो निम्न कारण स्पष्ट दिखाई देते हैं
1. सामाजिक समस्या- लैंगिक विषमता भारत में एक सामाजिक समस्या है, एक आदर्श महिला तथा पुरुष की पहचान के प्रतिमान भिन्न हैं। पुत्री को जन्म से ही हेय दृष्टि से देखना, दहेज प्रथा, अशिक्षा आदि के कारण लैंगिक विषमता बनी हुई है।
2. सामाजिक समस्या- पुरुष प्रधान समाज में नारी के सांस्कृतिक स्वरूप की त्रुटिपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करने तथा पुरुष को गरिमा मंडित करने के कारण भी सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है तथा महिलाओं को स्वतन्त्रता प्रदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।
3. मनोवैज्ञानिक समस्या- महिलाएँ मनोवैज्ञानिक रूप से भी इस विषमता की जिम्मेदार हैं। पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के कारण प्राय: स्त्री ही स्त्री के विकास में बाधा उत्पन्न कर देती है। प्रौढ़ शिक्षा द्वारा इस दिशा में प्रयास किया जा रहा है।
4. आर्थिक समस्या- लैंगिक असमानता के मूल में आर्थिक पक्ष है। कन्या को आर्थिक बोझ तथा पुत्र को आर्थिक वरदान माना जाता है। शिक्षा द्वारा इस मानसिकता को भी दूर करना आवश्यक है।
लैंगिक विषमता को नियन्त्रित करने के उपाय- सामाजिक संरना के सन्दर्भ में लैंगिक असमानता को दूर करना अनिवार्य है क्योंकि जो समाज इस दिशा में पिछड़ जाता है वह किसी भी प्रकार विकास नहीं कर पाता। लैंगिक विषमताओं को दूर करने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं इनमें से प्राथमिक शिक्षा के प्रयास निम्नांकित हैं
सभी बालिकाओं को स्कूल में भेजने के लिए भारत सरकार ने अपने विभिन्न प्रयास किये हैं इनमें सर्वशिक्षा अभियान के कार्यक्रमों के माध्यम से विशाल स्तर पर शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अवसर दिये जा रहे हैं। प्रारम्भिक शिक्षा सभी को उपलब्ध कराने के लिए सर्वशिक्षा अभियान में बालिकाओं पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ। निम्नलिखित हैं
(1) सभी बालिकाओं के लिए निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराना।
(2) बालिकाओं की शिक्षा के लिए और सहयोगी प्रारम्भिक शिशु देख-रेख सुविधाओं के लिए नवाचारी क्रियाकलाप के अन्तर्गत विशेष विधियों का प्रावधान।
(3) विद्यालयों में बालिकाओं के लिए सुविधाएँ बनवाना।
(4) ग्राम शिक्षा समितियों/अभिभावक-शिक्षक संघों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व।
(5) सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्त्री-पुरुष संवेदनशीलता।
(6) भर्ती किए जाने वाले 50 प्रतिशत शिक्षक महिलाएँ होंगी।
(7) बालिकाओं की शिक्षा की आवश्यकता के लिए पंचायती राज तथा समुदाय आधारित संगठनों को संवेदनशील बनाया जायेगा।
(8) स्त्री-पुरुष अनुरूपी पाठ्यक्रम तथा शिक्षण-अध्ययन सामग्री/पाठ्यपुस्तकें आदि तैयार करना ।
(9) प्रारम्भिक शिक्षा पद्धति में स्त्री-पुरुष संवदेनशील आयोजन तथा स्कूलों का प्रबन्धन
(10) शिक्षा गारण्टी तथा वैकल्पिक नवाचारी योजना के माध्यम से भिन्न-भिन्न आयु वर्गों की बालिकाओं के अनुरूप लचीली शिक्षा पद्धतियाँ प्रदान करना।
प्रारम्भिक स्तर पर राष्ट्रीय बालिका शिक्षा कार्यक्रम में बालिकाओं की शिक्षा को लक्ष्य बनाया गया है –
(1) कम महिला साक्षरता वाले तथा मुख्यत: अनुसूचित जाति / अनुसेचित जनजाति वाले शैक्षिक रूप से पिछड़े 2656 ब्लॉकों की सहभागिता।
(2) बालिकाओं के लिए विशेष उपाय, जिनमें कल्स्टर स्तर पर बालिका अनुकूलन स्कूलों का विकास, उपचारी शिक्षण, सेतु पाठ्यक्रम, शिशु देखरेख केन्द्र शामिल हैं।
(3) लेखन सामग्री, वर्दियाँ, कार्य-पुस्तिकाओं के रूप में अतिरिक्त प्रोत्साहन। कस्तूरबा गाँधी स्वतन्त्र विद्यालय, पिछड़े क्षेत्रों में बालिकाओं के लिए आवासीय स्कूल प्रदान करने की एक विशेष योजना है ताकि 750 आवासीय स्कूल स्थापित किए जा सकें।
महिला समस्या– शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के अधिकार प्रदान करने वाला एक कार्यक्रम है जिससे स्त्री-पुरुष असमानताएँ दूर की जा सकें और बालिकाओं की शिक्षा को सुदृढ़ किया जा सके।
(1) देश में कुल नामांकन में बालिकाओं की प्रतिशतता में बालिकाओं की शिक्षा में द्रुतगामी परिवर्तन को दर्शाया गया है। वर्ष 2000 में 44 प्रतिशत की अपेक्षा नामांकन 47 प्रतिशत हुआ।
(2) 1991 से 2001 में पुरुष साक्षरता हेतु 11.72 प्रतिशत की वृद्धि की अपेक्षा महिला साक्षरता दर में 14.876 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है।
(3) 1991 में जो स्त्री-पुरुष समानता सूचकांक 41 प्रतिशत था वह 2001 में बढ़कर 83 प्रतिशत हो गया।
(4) वर्ष 2010 तक स्त्री-पुरुष समानता का लक्ष्य प्राप्त करने की सम्भावना है।