मनोविज्ञान की शाखाएं कितनी है ?

मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है। इसमें व्यवहार का व्यापक अर्थ लगाया जाता है और व्यवहार के विस्तृत प्रयोग के कारण मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाएँ हैं; जैसे शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है, इसी प्रकार समूह-मनोविज्ञान (Group Psychology) समूह में स्थित परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

स्पष्ट है कि मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाएँ विशेष परिस्थितियों में पाए गए मानव व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित हैं। अतः मनोविज्ञान की शाखाओं को दो प्रमुख भागों में विभाजित कर सकते हैं—

  1. सैद्धान्तिक मनोविज्ञान (Therorietical or Pure Psy chology)
  2. व्यावहारिक मनोविज्ञान (Applied psychology)

इन दोनों की अन्य शाखाएँ निम्न प्रकार से हैं।

सैद्धान्तिक मनोविज्ञानव्यावहारिक मनोविज्ञान
सामान्य मनोविज्ञानशिक्षा मनोविज्ञान
शारीरिक मनोविज्ञानऔद्योगिक मनोविज्ञान
प्रयोगात्मक मनोविज्ञानव्यवसायिक मनोविज्ञान
बाल मनोविज्ञानऔपचारिक मनोविज्ञान
पशु मनोविज्ञानचिकित्सा मनोविज्ञान
समाज मनोविज्ञानअपराध मनोविज्ञान
असामान्य मनोविज्ञानकानून मनोविज्ञान

सैद्धान्तिक मनोविज्ञान

इसमें मनोविज्ञान की वह समस्त शाखायें सम्मिलित है जो मनोविज्ञान के मुख्य सिद्धांतों का अध्ययन करके तत्सम्बन्धी ज्ञान की वृद्धि करती हैं।

सैद्धांतिक मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाएं निम्नलिखित हैं।

1. सामान्य मनोविज्ञान- इसके अन्तर्गत साधारण परिस्थिति में सामान्य व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत सामान्य नियमों का अध्ययन मानव व्यवहार को समझने, नियन्त्रित करने तथा उसके विषय में भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। 

2. शारीरिक मनोविज्ञान- इसमें तन्त्रिका तन्त्र (Nervous system), ज्ञानेन्द्रियों की बनावट तथा उसके कार्यों एवं एण्डोक्रीन ग्रन्थियों आदि का अध्ययन किया जाता है।

3. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान- इसमें अनुभूतियों तथा व्यवहारों का अध्ययन पूर्व निर्धारित तथा नियोजित परिस्थितियों में किया जाता है तथा इसमें सभी प्राणियों के व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन (Experimental Study) होता है। इन नियमों का विभिन्न क्षेत्रों में भी प्रयोग करते हैं, जैसे स्मृति तथा सीखने के नियम शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयुक्त होते हैं।

4. बाल मनोविज्ञान– यह बालक की गर्भावस्था से प्रौढ़ावस्था तक का एक वैज्ञानिक अध्ययन विकासात्मक आधार से करता है। इसमें शिशु तथा बालक की विकास सम्बन्धी क्रियाओं एवं गतियों का शारीरिक और मानसिक दृष्टि से अध्ययन करते हैं।

5. पशु मनोविज्ञान- इसमें जानवरों की क्रियाओं का अध्ययन करते समय इससे प्राप्त सिद्धान्तों की मानव व्यवहार में प्राप्त सिद्धान्तों से अन्तर भी करते हैं। इस कारण कुछ मनोवैज्ञानिक इसे तुलनात्मक मनोविज्ञान भी कहते हैं।

6. समाज मनोविज्ञान— यह सामाजिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में मानवीय व्यवहार का अध्ययन है। इसमें समूहों के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ समूह के नेताओं, सेना के सेनापतियों तथा सैनिकों, समाज सुधारकों, छात्र-समूहों की क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता । इसके अन्तर्गत बालक के समाजीकरण, प्रचार, जन्म, नेतृत्व, सामाजिक तनाव तथा संघर्ष, संघ या समुदाय आदि की समस्याओं का अध्ययन करते हैं।

7. असामान्य मनोविज्ञान- इसमें असाधारण व्यक्तियों के व्यवहार तथा क्रियाओं का अध्ययन होता है। वे व्यक्ति, जिनका व्यवहार सामान्य से हटकर कुछ असाधारण-सा होता है, इस क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। इसमें पागलों, उन्माद तथा स्नायु रोगों से पीड़ित, विक्षिप्त, अर्धविक्षिप्त तथा अन्य मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है। असामान्य मनोविज्ञान के तीन प्रमुख कार्य हैं–(i) असाधारण मानसिक व्यवहारों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करना, (ii) इसके कारणों का पता लगाना, (iii) इनका उपचार करना।

व्यावहारिक मनोविज्ञान

व्यावहारिक मनोविज्ञान उस मनोविज्ञान को कहते हैं, जिसके अन्तर्गत विशुद्ध मनोविज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों का प्रयोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।

व्यावहारिक मनोविज्ञान की शाखाएँ निम्नलिखित हैं-

1. शिक्षा मनोविज्ञान- इसमें सीखने के सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रयोग कर शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान की विषयवस्तु के तीन प्रमुख अंग हैं-(1) शिक्षार्थी, (2) शिक्षक तथा (3) सीखना-प्रक्रम शिक्षार्थी को शिक्षा का केन्द्र माना जाता है। अत: उसके मनोविज्ञान को ज्ञात करना अत्यन्त आवश्यक है। इसी प्रकार शिक्षक भी शिक्षा का दूसरा प्रमुख अंग है। शिक्षक की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का प्रभाव शिक्षार्थी पर पड़ता है। उसका प्रशिक्षण कैसे होना चाहिए और उसकी कार्य दक्षता में कैसे सुधार किया जा सकता है आदि बातों का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। इसी प्रकार सीखना-प्रक्रम के अन्तर्गत सीखने की विधि, निर्धारक आदि की चर्चा की जाती है। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने की परिस्थितियों में घटित व्यवहार का अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक के गुण, व्यवहार तथा अध्ययन-विधि की भी जानकारी प्रदान करता है।

2. औद्योगिक मनोविज्ञान- मनोविज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों का प्रयोग जब उद्योग के क्षेत्र में किया जाता है तो उससे औद्योगिक मनोविज्ञान का जन्म होता है। औद्योगिक मनोविज्ञान का उद्देश्य कर्मचारियों को कार्य संतुष्टि प्रदान करना है। इससे सम्बन्धित बातें हैं—व्यवसाय चयन और व्यावसायिक निर्देशन। इसमें कार्य विश्लेषण करके यह ज्ञात करने का प्रयत्न किया जाता है कि विशेष कार्य को कुशलतापूर्वक करने के लिए किन-किन गुणों का कर्मचारियों में होना आवश्यक है। इसी के आधार पर विशेष व्यक्ति को एक उपयुक्त कार्य के लिए चुना जाता

है। इसे व्यवसाय-चयन कहते हैं। दूसरी तरफ, व्यक्ति की बुद्धि, अभियोग्यता और रुचि का निरीक्षण करके उसे एक विशेष उपयुक्त व्यवसाय ही अपनाने का परामर्श दिया जाता है। इसे व्यावसायिक निर्देशन कहते हैं।

3. व्यावसायिक मनोविज्ञान– इसके सिद्धान्तों का प्रयोग विभिन्न व्यवसाय के क्षेत्रों में किया जाता है। इसमें भी व्यवसाय-चयन तथा व्यावसायिक निर्देशन पर जोर दिया जाता है।

4. औपचारिक मनोविज्ञान- यह विभिन्न प्रकार की मानसिक असामान्यताओं से सम्बन्धित हैं; जैसे—मानसिक बीमारियाँ, लैंगिक विकृतियाँ, चारित्रिक व्याधि इत्यादि। इन्हें दूर करने के लिए मनोवैज्ञानिक विधियों, जैसे—सुझाव, सम्मोहन, मनोविश्लेषण, स्वप्न- विश्लेषण, आघात-चिकित्सा, व्यावसायिक चिकित्सा तथा मनो-अभिनय आदि का प्रयोग किया जाता है।

5. चिकित्सा मनोविज्ञान डॉक्टरों के पास बहुत से मरीज ऐसे पहुँचते हैं जिनके रोगों का कारण शारीरिक न होकर मानसिक होता है। बहुत से रोग मानसिक कारणों से उत्पन्न होते हैं। जैसे—बदहजमी, वमन, अल्सर, दाद-खाज, तपेदिक, रक्तचाप की कमी या अधिकता आदि बीमारियाँ मानसिक चिन्ता, संवेगात्मक असन्तुलन आदि के कारण उत्पन्न होती हैं। अतः चिकित्सा-मनोविज्ञान में इन बीमारियों के कारणों का पता लगाकर उनका इलाज किया जाता है।

6. अपराध मनोविज्ञान इसमें अपराधियों की प्रवृत्तियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके उनको सुधारने का प्रयत्न किया जाता है। प्राचीन मनोवैज्ञानिकों का विचार था कि अपराध करने की प्रवृत्ति जन्मजात होती है। अपराधी पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते। किन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिकों की धारणा यह है कि अपराध करने की प्रवृत्ति जन्मजात न होकर अर्जित होती है। इसमें वातावरण तथा परिस्थितियाँ प्रमुख होती हैं। आजकल अपराधियों को जेल की सजा देकर अथवा दण्डित करके सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक उपाय भी अपनाये जा रहे हैं। हमारे देश में इस क्षेत्र में नये-नये प्रयोग हो रहे हैं। जैसे—’बाल अपराध योजना सम्बन्धी न्यायालय’ तथा ‘बाल अपराध सुधार केन्द्र’ आदि की स्थापना। इस प्रकार व्यक्ति की असामान्यताओं को दूर करके उसे समाज में अभियोजित व्यक्ति बनाने की चेष्टा हो रही है।

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