भारत में भूमण्डलीकरण की अवधारणा का सूत्रपात सन् 1991 में तत्कालीन वित्तमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा किया गया था। यह एक जटिल सम्प्रत्यय है। कुछ लोग इसे मात्र आर्थिक अवधारणा समझते हैं, तो कुछ इसे उदारीकरण अथवा निजीकरण की अवधारणा के रूप में देखते हैं। भूमण्डलीकरण जो कि अंग्रेजी शब्द Globalization का हिन्दी अनुवाद है। भूमण्डलीकरण को परिभाषित करने वाले विचार मुख्यतः तीन तरह के रहे हैं
- यह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का अगला चरण है।
- कुछ विद्वान् यह मानते हैं कि सन् 1980 के दशक के पश्चात् अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों ने आर्थिक मन्दी से उबरने और अपने उत्पादों की बिक्री के लिए विश्व के अन्य देशों की व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की दृष्टि से उदारीकरण की नीति मुक्त उदार व्यवस्था, विश्व अर्थव्यवस्था तथा प्रौद्योगिकी के एकीकरण की नीति के परिणामस्वरूप भूमण्डलीकरण का जन्म हुआ।
- यह नयी प्रक्रिया नहीं है बल्कि 17वीं शताब्दी से ही दुनिया में निवेशवाद के रूप में प्रारम्भ हुई जिसके अगुआ इंग्लैण्ड एवं फ्रांस जैसे देश रहे। इस प्रकार आज अब यह स्थापित हो चुका है कि किसी भी विचार, वस्तु सेवा पद्धति अथवा सिद्धान्त को विश्वव्यापी बनाना ही उस विचार, वस्तु, सेवा अपना सिद्धान्त का वैश्वीकरण कहलाता है।
वस्तुतः “वैश्वीकरण एक व्यापक अवधारणा है जो विश्व के सभी समाजों की संरचना के समस्त पक्षों की शक्तियों के सहारे पश्चिम के अथवा सुविधा सम्पन्न विकसित राष्ट्रों के प्रभुत्ववादी उद्देश्यों को पूरा करने की एक महत्वाकांक्षी प्रक्रिया है। किसी समाज की अर्थव्यवस्था, राजनीति, तकनीकी संस्कृति एवं शिक्षा को प्रभावित करती है।”
वैश्वीकरण के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए डॉ. दीपिका गुप्ता ने कहा है कि “वैश्वीकरण विकास की वह अवस्था मानी जा सकती है जिसमें सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान राष्ट्र राज्यरूपी कृत्रिम सीमाओं एवं नियन्त्रण के रूप में विश्व स्तर पर होता है। वैश्वीकरण की भूमि पर खींची हुई राष्ट्र राज्य रूपी कृत्रिम सीमाओं पर आधारित राजनीतिक इकाई से भिन्न उभरती हुई सांगठनिक इकाई के सन्दर्भ में देखा जा सकता है और वैश्वीकरण उन सभी प्रक्रियाओं की ओर संकेत करता है जिसमें विश्व के लोग ‘एकल विश्व समाज’ के रूप में संगठित हो रहे हैं।”
वर्तमान समय में जिस वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण का शोर सर्वाधिक हो रहा है उसका प्रवेश भारत में 1990-91 में हुआ और इसके पक्ष-विपक्ष में लोग खड़े होने लगे हैं। इसका सर्वाधिक खतरनाक प्रभाव हमारी शिक्षा पर पड़ा। इस सन्दर्भ में श्री रमेश अनुपम ने अपने एक आलेख में उन खतरों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “भूमण्डलीकरण के नाम पर, विश्वग्राम के परवैविध्य या अनेकता की संस्कृति को नष्ट कर एक ही सांस्कृतिक प्रतिमान बनाये जाने की बात कही जा सकती है। हम वही गायें, वही नाचें, वही पहनें जो भूमण्डलीय के आकार चाहते हैं। अमेरिकन पाश्चात्य संस्कृति द्वारा हमारी संस्कृति का मूल्यांकन किया जा रहा है। हमारी संस्कृति नष्ट-भ्रष्ट करने की सुनियोजित प्रयास चल रहा है। यह एक तरह से बौद्धिक सांस्कृतिक हमला है। भूमण्डलीकरण के नव्य आधुनिक पैरोकार यह जानते हैं कि किसी देश को आर्थिक या राजनैतिक रूप से पराजित करने से पहले ऐसे बौद्धिक रूप से, सांस्कृतिक रूप से पराजित करने की जरूरत सबसे पहले पड़ती है।”
शिक्षा पर भूमण्डलीकरण का प्रभाव
शिक्षा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया है, सीखने-सिखाने की यह प्रक्रिया शिक्षार्थियों के चारों ओर व्याप्त वातावरण में चलती है। यह वातावरण मुख्यतः पारिवारिक, सामुदायिक, राष्ट्रीय होता है। शिक्षा के प्रथम अध्याय का प्रारम्भ माता-पिता एवं परिवार से होता है, अगला अध्याय समुदाय में और शेष अध्याय प्रान्तीय, राष्ट्रीय वातावरण से सम्बन्धित अध्याय है और आज के परिप्रेक्ष्य में एक और प्रमुख अध्याय जुड़ गया है और यह है, विश्व अध्याय अन्तर्राष्ट्रीय अध्याय जिसने वैश्वीकरण के प्रभाव से पूर्व के सभी अध्यायों को गौण कर दिया है।
क्योंकि परिवार, समुदाय, राष्ट्र सभी को इसने अपने अन्दर समाहित कर लिया है। जैसे-इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिक-टीवी, कम्प्यूटर आदि के प्रभाव से यह अपना शैक्षिक प्रभाव बाल्यकाल से शिक्षार्थियों पर जमाने लगा है।
यद्यपि यह निर्विवादित तथ्य है कि वैश्वीकरण का सर्वाधिक लाभ शिक्षा जगत को ही हुआ है और वह भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मुक्त विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा इण्टरनेण्ट आदि माध्यम जो शिक्षा के प्रसार चलाये जा रहे हैं, वैश्वीकरण का ही प्रभाव है, इलैक्ट्रॉनिक संचार ने दुनिया को एक सूत्र में बाँध दिया है। सेटैलाइट क्रान्ति ने कम्प्यूटर क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त किया है। कम्प्यूटर ने दुनिया को एक ग्राम अथवा विश्व ग्राम में परिवर्तित कर दिया है। इण्टरनेट के चमत्कार से ई-शिक्षा, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ई-लर्निंग का विकास वर्तमान समय में दुनिया की वास्तविकता बन गया है। इसने समय एवं दूरी को समाप्त कर दिया है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति किसी दूसरे कोने में बैठे व्यक्ति को शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान कर सकता है। माध्यम होता है, ई-शिक्षा, इससे अध्यापक एवं विद्यार्थी अपने ज्ञान को ताजा बनाये रखने के साथ-साथ ज्ञान क्षेत्र का विस्तार भी कर सकते हैं।