स्वामी विवेकानन्द का राजनीतिक दर्शन

राजनीति व राष्ट्रवाद का आधार धर्म – विवेकानन्द राजनीतिक आन्दोलन के पक्ष में नहीं थे फिर भी उनकी इच्छा थी कि एक शक्तिशाली, बहादुर और गतिशील राष्ट्र का निर्माण हो वे धर्म को राष्ट्रीय जीवनरूपी संगीत का स्थायी स्वर मानते थे

स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार

स्वामी दयानन्द के सम्बन्ध में कहा गया है कि वे उच्चकोटि के एक निर्भीक दूत एवं समाज सुधारक थे। भारत के पुनर्जागरण की शताब्दी, 19वीं शताब्दी में जागरण की ज्योति जलाने वाले महापुरुषों में अग्रगण्य स्वामी दयानन्द सरस्वती एक सच्चे महात्मा थे।

कौटिल्य का मण्डल सिद्धान्त

कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ में न केवल राज्य के आन्तरिक प्रशासन के सिद्धान्तों का उल्लेख किया है वरन् उसने उन सिद्धान्तों का भी उल्लेख किया है जिनके आधार पर एक राज्य द्वारा दूसरे राज्यों के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित किये जाने चाहिए।

मनु का सप्तांग सिद्धांत क्या है ?

मनुस्मृति में राज्य की प्रकृति का वर्णन किया गया है। मनु ने राज्य को सावयव माना है। और यह माना है कि राज्य सात अंग होते हैं। कौटिल्य की भांति मनु ने भी राज्य के सात आवश्यक अंग अथवा तत्त्वों का उल्लेख किया है जिन्हें ‘सप्तांग गुप्त’ कहा गया है।

मनु की वर्ण व्यवस्था

मनुस्मृति में उल्लेख आया है कि “ईश्वर ने विश्व की समृद्धि और कल्याण के लिए मुख, बाँह, जंघा तथा पैर से क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की रचना की।” इस प्रकार मनुस्मृति समाज को धर्म और कर्म के आधार पर चार वर्गों या वर्णों में विभाजित करती है।

प्लासी और बक्सर का युद्ध

1757 ई. के प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की पराजय व मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया, चूँकि मीरजाफर अंग्रेजों की कृपा से बंगाल का नवाब बना था